आ़खिर 498-ए है क्या?
हमारे देश में अस्सी के दशक में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा बड़ा मुद्दा बन गया था.
ऐसा पाया गया कि परिवार नाम के दायरे के अंदर महिलाओं के खिलाफ हिंसा की प्रमुख वजहों में से एक दहेज भी है. इसी वक्त मुल्क में दहेज हत्याओं के ख़िलाफ़ भी जबरदस्त आवाज़ उठी.
इसी पसमंजर में महिला आंदोलन के दबाव में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में ‘498-ए’ वजूद में आया.
धारा 498-ए यानी किसी महिला पर पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता करने की हालत में बचाने वाला क़ानून. यह क़ानून क्रूरता की परिभाषा भी बताता है.इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध है। दहेज के लिए ससुराल में प्रताड़ित करने वाले तमाम लोगों को आरोपी बनाया जा सकता है।
ये है सजा,,,,,,,,,,
इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं अगर शादीशुदा महिला की मौत संदिग्ध परिस्थिति में होती है और यह मौत शादी के 7साल के दौरान हुआ हो तो पुलिस आईपीसी की धारा 304-बी के तहत केस दर्ज करती है।
1961में बना दहेज निरोधक कानून रिफॉर्मेटिव कानून है। दहेज निरोधक कानून की धारा 8कहता है कि दहेज देना और लेना संज्ञेय अपराध है। दहेज देने के मामले में धारा-3के तहत मामला दर्ज हो सकता है और इस धारा के तहत जुर्म साबित होने पर कम से कम 5साल कैद की सजा का प्रावधान है। धारा-4के मुताबिक, दहेज की मांग करना जुर्म है। शादी से पहले अगर लड़का पक्ष दहेज की मांग करता है, तब भी इस धारा के तहत केस दर्ज हो सकता है।
तलाक के बजाय ज्यादा घर दहेज प्रताड़ना कानून के चलते बरबाद हो रहे हैं. छोटेछोटे घरेलू विवाद दहेज प्रताड़ना में तबदील हो रहे हैं.,,,,,,,,,,,,
ललित नाम के युवक की परेशानी,,उसी की जुबानी ‘‘मेरी शादी को 9साल हो गए हैं. मेरे 60वर्षीय एडवोेकेट ससुर ने दहेज प्रताड़ना कानून 498ए की धमकी दे कर मुझे परेशान कर रखा था. मेरी बीवी 6महीने से मायके में है. वह अपनी सारी ज्वैलरी व सामान भी ले गई है. अब उन लोगों ने मेरे खिलाफ दहेज प्रताड़ना व घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करा दी है. जब मैं ने शिकायत वापस लेने की बात की तो उन्होंने मेरे खिलाफ भरणपोषण का केस दाखिल कर दिया.’’ ‘‘मेरी भाभी ने हमारा जीना मुहाल कर रखा है. बातबात पर वे मेरे बूढ़े मांबाप और मुझे जेल भिजवाने की धमकी देती रहती हैं, छोटेछोटे घरेलू विवाद को वे दहेज प्रताड़ना का नाम देती हैं. इस तरह इस कानून का वे नाजायज फायदा उठा रही हैं. हम बहुत परेशान हैं.’’
इन दिनों दहेज प्रताड़ना के खिलाफ कानून की धारा 498-ए को लेकर बहस जारी है कि इसका महिलाएं दुरुपयोग कर रही हैं। इस धारा के दोनों ही पक्ष हैं। यह कुछ महिलाओं के लिए वरदान से कम नहीं है, क्योंकि दहेज के लिए होने वाली हत्याओं के कटु सत्य को नकारा नहीं जा सकता है। दहेज पीड़ितों के लिए यह सहारा है। वहीं, दूसरी तरफ गलत मंशा से इसका प्रयोग करने वाली महिलाओं के लिए यह एक हथियार की तरह है। वह इसके जरिए अपने गलत इरादों को अंजाम तक पहुंचाती है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश,,,,,
ये दिशा-निर्देश लागू होंगे
सुप्रीम कोर्ट ने कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हर जिले में एक परिवार कल्याण कमेटी गठित करेगी, जिसमें तीन सदस्य होंगे। इस कमेटी के कार्य की जिला एवं सत्र न्यायाधीश समय-समय पर और कम से कम एक वर्ष में समीक्षा करेंगे। जबकि कमेटी में अर्द्धविधिक स्वयंसेवी/ सामाजिक कार्यकर्ता/ पूर्व कर्मी/ कार्यरत कर्मियों या अन्य नागरिकों की पत्नियां भी सदस्य होंगी। कमेटी के सदस्यों को गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा।
धारा 498ए के तहत आई प्रत्येक शिकायत पुलिस या मजिस्ट्रेट इस कमेटी के पास भेजेंगे। कमेटी परिवार के सदस्यों से व्यक्तिगत रूप से, फोन, मेल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यमों से बातचीत करेगी। इसके बाद कमेटी अपनी रिपोर्ट एक माह में मजिस्ट्रेट या पुलिस को भेजेगी, जिसमें उसकी तथ्यात्मक राय होगी। कमेटी की रिपोर्ट प्राप्त होने तक पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं करेगी। साथ ही रिपोर्ट पर पुलिस जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट उसके गुणदोष को लेकर विचार करेंगे। कमेटी के सदस्यों को विधिक सेवा प्राधिकरण समय-समय पर बुनियादी प्रशिक्षण देगा और उन्हें उचित मेहनताना भी दिया जाएगा। उनके मेहनताने के लिए जिला एवं सत्र जज जुर्माना राशि से फंड ले सकते हैं।
धारा 498ए के तहत मिली शिकायत पर क्षेत्र के निर्दिष्ट अधिकारी जांच करेंगे। ऐसे अधिकारी को पुलिस एक माह के अंदर नियुक्त करेगी और उन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा। समझौता हो चुके मामलों में जिला एवं सत्र जज कार्यवाही समाप्त करेंगे। देश से बाहर रह रहे आरोपियों के पासपार्ट जब्त या रेड कॉर्नर नोटिस रूटीन में जारी नहीं किए जाएंगे। मामले से जुड़े सभी केस एक ही अदालत में रखे जाएंगे, ताकि जज को इसकी पूरी जानकारी रहे।
मारपीट या मौत में यह सहूलियत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि उसके ये निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे, जहां पीड़ित के शरीर पर चोटों के निशान मिले हों या उसकी मृत्यु हो गई हो।
पुरुष आयोग भी बने,,,,,,,
यह सर्वविदित है कि सारे कानून पूर्णतः महिला-हितैषी हैं। थोड़ा भी विवाद होते ही पुरुषांे का जीवन नर्क बना दिया जाता है। न्यायपालिका को कानून के दुरुपयोग की जानकारी है। मगर सरकार ने इस तथ्य पर कभी गौर नहीं किया है। राज्य एवं राष्ट्रीय महिला आयोग का ध्यान भी सिर्फ स्त्री की सुरक्षा तक ही सीमित है। यह सोचने की बात है कि जब महिलाओं के साथ कुछ गलत किया जाता है तो उन्हें सुरक्षा दी जाती है। पुरुषों के मामले में ऐसा क्यों नहीं किया जाता ? घर परिवार में अमन-चैन के लिए पति-पत्नी और परिजनों के बीच सामंजस्य आवश्यक है। लेकिन आज दम्पतियों में परस्पर सद्भाव, सौहार्द्र, सहयोग और सहिष्णुता का अभाव है। इसलिए परिवार का अस्तित्व संकट में है। पुरुष के सामने स्त्री विरोधी की मुद्रा में खड़ी है। स्त्रीवादी निरंतर उसे पुरुष के खिलाफ उकसा रहे हैं और वह स्वतंत्रता व समानता के नाम पर उच्छृंखलता की राह पर चलने में ही अपने जीवन की सफलता मानती है। फिर परिवार की रक्षा कैसे होगी ? एक सुंदर, शांत, सुखी पारिवारिक जीवन की परिकल्पना कैसे साकार होगी ? महिलाओं द्वारा प्रताडि़त पुरुषों का तो कथन है कि ‘महिला आयोग’ की तरह देश में ‘पुरुष आयोग’ भी बनना चाहिए, जो पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों की सुनवाई करे।
धारा 498अ के केस में आरोप के बिंदु अलग अलग हो सकते हैं। अपने वकील के माध्यम से सबूत सहित खुद पर लगे सभी आरोपों को झूठा साबित कीजिए। जब तक कि इस कानून में पुरुषों के पक्ष को देखते हुए संशोधन नहीं होते, तब तक इस लंबी प्रक्रिया के तहत अपना पक्ष मज़बूती से रखें और धैर्य रखते हुए खुद को निर्दोष साबित करें।